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लेखनी कहानी -05-Nov-2022 ठिठुरन भरी शीत का मौसम

गीत 


लो आ गया है फिर ठिठुरन भरी शीत का मौसम 
मदमाते हुस्न फड़कते यौवन के गीत का मौसम

कोहरे की रजाई ओढ़ , सूरज बेसुध पसरता है
ठंड से ठिठका सवेरा , ठहर ठहर कर चलता है 
पानी के नाम से ही "हरि" सबका दम निकलता है
जिस्मानी गरमी देनेवाले मेरे मनमीत का मौसम
लोआ गया है फिर वो ठिठुरन भरी शीत का मौसम 

शीतलहर पे यौवन की मस्त फिजां सी छाई है 
अपने साथ में ओलों की बरसात लेकर आई है 
इनसे डरके धूप भी किसी कोने में जा सुस्ताई है
हमसफर की बाहों के झूले में प्रीत का मौसम 
लो आ गया है फिर वो ठिठुरन भरी शीत का मौसम 

तिल गुड़ गजक मूंगफली रेवड़ी बाहर निकल आये
खिचड़ी, राबड़ी, गर्म परांठे सबके मन को भाये 
पुए, पकौड़े, चूरमा, बाटी, हलवा बरबस लुभाये 
आंखों की मधुशाला से पीकर जीत का मौसम 
लो आ गया है फिर वो ठिठुरन भरी शीत का मौसम 

स्वेटर, जाकेट, कोट, पुलोवर फूले नहीं समाये 
मफलर, कैप, शॉल, स्टॉल की डिमांड बढती जाये 
तीन किलो की रजाई में भी ठंड ना रुकने पाये 
कामकेलि में थककर चूर होने की रीत का मौसम 
लो आ गया है फिर वो ठिठुरन भरी शीत का मौसम 

हरिशंकर गोयल "हरि"
5.11. 22 


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4 Comments

Gunjan Kamal

15-Nov-2022 04:48 PM

बहुत ही सुन्दर

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Haaya meer

05-Nov-2022 04:38 PM

Amazing

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Muskan khan

05-Nov-2022 04:14 PM

Well done ✅

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